Chhayawad ke Kavi। Paribhasha

 

छायावाद: परिभाषा, समय सीमा, प्रवृत्तियाँ, विशेषताएँ, कवि एवं रचनाएँ


Chhayawad ke Kavi। Paribhasha


परिचय

छायावाद हिंदी साहित्य का एक अत्यंत महत्वपूर्ण काव्य आंदोलन था, जिसने हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया। यह आंदोलन मुख्यतः 1918 से 1936 तक प्रभावी रहा और इसने हिंदी काव्य में व्यक्तिवाद, प्रकृति-प्रेम, रहस्यवाद, कल्पनाशीलता, स्वप्नशीलता, करुणा तथा राष्ट्रीय भावना जैसे तत्वों को प्रमुखता प्रदान की।

छायावादी काव्यधारा ने हिंदी साहित्य को काव्यगत नवीनता प्रदान की और इसे लोकभाषा के बजाय परिष्कृत, संगीतात्मक तथा भावनात्मक शैली में प्रस्तुत किया। इसने हिंदी कविता को सिर्फ राष्ट्रवादी और धार्मिक चेतना से बाहर निकालकर उसे मानवीय संवेदनाओं और आत्मानुभूति के स्तर तक पहुँचाया। यही कारण है कि छायावाद हिंदी साहित्य के स्वर्णयुग के रूप में जाना जाता है।


छायावाद की परिभाषा

छायावाद एक काव्य प्रवृत्ति है, जिसमें व्यक्तिवाद, प्रकृति-प्रेम, रहस्यवाद और कल्पना की प्रधानता होती है। इस शैली में कवियों ने बाह्य जगत से अधिक अपने अंतःजगत, भावनाओं और संवेदनाओं को महत्व दिया।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने छायावाद को इस प्रकार परिभाषित किया है:

"छायावाद हिंदी काव्य में नवजागरण का आंदोलन है, जिसमें व्यक्ति की आत्मा, सौंदर्य और स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति हुई।"

छायावाद को हिंदी कविता का रोमांटिक आंदोलन भी कहा जाता है। यह यूरोपीय रोमांटिसिज्म से प्रभावित था, जिसने हिंदी काव्य को समाज और राष्ट्र से परे एक व्यक्तिगत, आध्यात्मिक एवं गूढ़ चेतना की ओर मोड़ दिया। इस आंदोलन में कवियों ने पारंपरिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा की गहराइयों को काव्यबद्ध किया।


छायावाद के प्रमुख कवि

छायावाद युग में चार प्रमुख कवि हुए, जिन्हें 'छायावाद के चार स्तंभ' कहा जाता है:

  1. जयशंकर प्रसाद
  2. सुमित्रानंदन पंत
  3. महादेवी वर्मा
  4. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

इनके अलावा, बालकृष्ण शर्मा नवीन, रामकुमार वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, तथा माखनलाल चतुर्वेदी जैसे कवियों ने भी इस प्रवृत्ति से प्रेरित होकर काव्य सृजन किया।


छायावाद का समय-सीमा

छायावाद हिंदी साहित्य के आधुनिक काल का एक महत्वपूर्ण काव्य आंदोलन है, जिसकी समय-सीमा इस प्रकार मानी जाती है:

  1. प्रारंभ (1918-1920):

    • जयशंकर प्रसाद की रचनाओं कामायनी, आँसू तथा लहर के प्रकाशन से छायावाद की शुरुआत मानी जाती है।
    • इस काल में हिंदी कविता का रूढ़िगत स्वरूप बदलने लगा।
  2. स्वर्णकाल (1920-1930):

    • इस काल में छायावाद अपने चरम पर था।
    • इस दौरान निराला, महादेवी, प्रसाद और पंत की प्रमुख कृतियाँ प्रकाशित हुईं।
    • इस युग में कविता ने भावुकता, कल्पनाशीलता और कोमलता का अद्भुत संयोग देखा।
  3. अवसान (1936 के बाद):

    • छायावाद के बाद हिंदी साहित्य में प्रगतिवाद और नई कविता जैसी प्रवृत्तियाँ विकसित होने लगीं।
    • यथार्थवाद और सामाजिक समस्याओं पर आधारित साहित्य ने छायावाद को धीरे-धीरे पीछे छोड़ दिया।

छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ इस प्रकार थीं:

1. व्यक्तिवाद (Individualism)

  • छायावादी कवियों ने "मैं" को कविता का केंद्र बनाया।
  • कविता में आत्मचिंतन, आत्मसंघर्ष और आत्मविश्लेषण प्रमुख रहा।

2. प्रकृति प्रेम (Nature Worship)

  • प्रकृति को सिर्फ सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि आत्मा का मार्गदर्शक माना गया।
  • फूल, चंद्रमा, सूरज, नदी, बादल जैसे प्राकृतिक प्रतीकों का अधिक प्रयोग हुआ।

3. रहस्यवाद और आध्यात्मिकता (Mysticism & Spirituality)

  • ईश्वर, आत्मा और जीवन-मृत्यु के रहस्यों को कविता का विषय बनाया गया।
  • रहस्यवाद के माध्यम से अंतरात्मा की गहराइयों में झांकने की चेष्टा की गई।

4. स्वप्न और कल्पनाशीलता (Dream & Imagination)

  • छायावादी कविताओं में स्वप्निलता और कल्पना का विशेष महत्व था।
  • वास्तविकता की कठोरता से हटकर कवियों ने मनोभावों को अधिक महत्व दिया।

5. स्त्री चेतना और करुणा (Feminine Sensitivity)

  • महादेवी वर्मा ने स्त्री जीवन की वेदना, संवेदना और संघर्ष को व्यक्त किया।
  • नारी को केवल प्रेम की वस्तु न मानकर एक स्वतंत्र अस्तित्व प्रदान किया।

छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ

  1. कोमल, मधुर और सांकेतिक भाषा का प्रयोग।
  2. रूपक, प्रतीक और अलंकारों की अधिकता।
  3. गीतात्मकता और संगीतात्मकता।
  4. भावुकता और कोमलता।
  5. प्रकृति और नारी का भावनात्मक चित्रण।

छायावाद के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

1. जयशंकर प्रसाद

  • प्रमुख रचनाएँ: कामायनी, आँसू, लहर
  • विशेषता: रहस्यवाद, आध्यात्मिकता, राष्ट्रीयता

2. सुमित्रानंदन पंत

  • प्रमुख रचनाएँ: पल्लव, गुंजन, युगांत
  • विशेषता: प्रकृति-प्रेम, सौंदर्य-बोध, कल्पनाशीलता

3. महादेवी वर्मा

  • प्रमुख रचनाएँ: नीरजा, दीपशिखा, संध्यागीत
  • विशेषता: स्त्री-चेतना, करुणा, आत्मानुभूति

4. सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

  • प्रमुख रचनाएँ: परिमल, अनामिका, गीतिका
  • विशेषता: स्वतंत्रता, विद्रोह, बंधनमुक्त शैली

छायावाद के दोहे (उदाहरण)

सुमित्रानंदन पंत

"वह ओस-कण सा शीतल था, पवन-सा निर्मल, गगन-सा गहरा।"

महादेवी वर्मा

"जो तुम आ जाते एक बार, कितना मैं तुमको चाहती!"

निराला

"तोड़ती पत्थर, देखी मैंने इलाहाबाद के पथ पर।"


निष्कर्ष

छायावाद हिंदी साहित्य के इतिहास में काव्य की नई ऊँचाई है। इस आंदोलन ने हिंदी कविता को कोमलता, कल्पनाशीलता और गहराई प्रदान की। यह केवल एक साहित्यिक प्रवृत्ति नहीं, बल्कि भावनाओं की क्रांति थी, जिसने हिंदी काव्य को राष्ट्रीयता, रहस्यवाद और आत्मा की खोज तक पहुँचाया।

आज भी छायावाद के कवि और उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य प्रेमियों के हृदय को छूती हैं और उनकी संवेदनाओं को गहराइयों तक झकझोर देती हैं।

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