Suryakant Tripathi Nirala ka jeevan parichay

सूर्यकांत  त्रिपाठी 'निराला' का जीवन एवं साहित्यिक परिचय

Suryakant Tripathi Nirala ka jeevan parichay


सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के उन महानतम रचनाकारों में से एक हैं, जिन्होंने हिंदी कविता को नई दिशा और नई ऊँचाइयाँ दीं। वे छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों में से एक थे, किंतु उनकी साहित्यिक यात्रा केवल छायावाद तक सीमित नहीं रही। उन्होंने मुक्त छंद को हिंदी कविता में प्रतिष्ठित किया और सामाजिक कुरीतियों पर तीखा प्रहार किया। उनकी साहित्यिक यात्रा अत्यंत संघर्षमय रही, परंतु उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। उनके साहित्य में समाज, स्वतंत्रता, नारी जागरण, शोषितों की व्यथा और विद्रोह की गूंज सुनाई देती है। इस लेख में हम उनके जीवन, साहित्यिक योगदान, भाषा-शैली, विशेषताएँ, प्रविधियाँ, और उनकी प्रमुख रचनाओं का विस्तार से अध्ययन करेंगे।


1. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जीवन परिचय

(1) जन्म और प्रारंभिक जीवन

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म 21 फरवरी 1896 को बंगाल प्रेसीडेंसी के मेदिनीपुर जिले के महिषादल नामक स्थान पर हुआ था। हालाँकि वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गढ़कोला गाँव के निवासी थे। उनके पिता रामसहाय त्रिपाठी महिषादल रियासत में कार्यरत थे, इस कारण उनकी प्रारंभिक शिक्षा बंगाल में ही हुई।

(2) माता-पिता एवं पारिवारिक पृष्ठभूमि

उनकी माता का नाम जानकी देवी था और पिता रामसहाय त्रिपाठी थे। उनके पिता अनुशासनप्रिय थे और परिवार की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी। बाल्यकाल से ही ‘निराला’ ने कठिनाइयों का सामना किया। जब वे बहुत छोटे थे, तभी उनकी माता का निधन हो गया।

(3) शिक्षा

चूँकि उनका जन्म बंगाल में हुआ था, इसलिए उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा बंगाली भाषा में प्राप्त की। बंगाल के साहित्य और संस्कृति का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने हिंदी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषा का भी अध्ययन किया, लेकिन औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। स्वाध्याय से उन्होंने साहित्य और दर्शन का गहरा ज्ञान प्राप्त किया।

(4) विवाह और पारिवारिक संघर्ष

बहुत ही कम आयु में उनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया, लेकिन विवाह के कुछ वर्षों बाद ही उनकी पत्नी का निधन हो गया। इसके बाद उनकी एकमात्र संतान (पुत्री) भी चल बसी। इस त्रासदी ने उनके जीवन को अत्यधिक दुखमय बना दिया। इन घटनाओं ने उनके साहित्य में गहरे करुण रस का संचार किया।

(5) मृत्यु

निराला का जीवन आर्थिक कठिनाइयों, मानसिक संघर्षों और सामाजिक उपेक्षाओं से भरा रहा। अपने अंतिम दिनों में वे अत्यधिक अभावों में जी रहे थे। 15 अक्टूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हो गया।


2.सूर्यकांत  त्रिपाठी निराला साहित्यिक परिचय

(1) काव्यगत विशेषताएँ

निराला मूलतः एक विद्रोही कवि थे। उन्होंने परंपरागत काव्यशैली को तोड़कर नई भाषा-शैली विकसित की। उनकी कविता में प्रेम, करुणा, विद्रोह, प्रकृति, समाज-सुधार और मानवता के गहरे भाव मिलते हैं। उन्होंने हिंदी कविता में मुक्त छंद को अपनाकर नई प्रवृत्तियों को जन्म दिया।

(2) प्रमुख काव्य संग्रह

  1. अनामिका
  2. परिमल
  3. गीतिका
  4. कुकुरमुत्ता
  5. अर्चना
  6. नये पत्ते
  7. बेला

(3) प्रमुख गद्य रचनाएँ

निराला केवल कवि ही नहीं, बल्कि उत्कृष्ट गद्यकार भी थे। उन्होंने उपन्यास, कहानियाँ, निबंध और जीवनी साहित्य की रचना भी की।

(क) उपन्यास

  1. चतुरी चमार
  2. प्रभावती
  3. निर्मला
  4. कुल्ली भाट

(ख) कहानी संग्रह

  1. लिली
  2. चपला

(ग) निबंध और जीवनी

  1. रवींद्र-कविता-कानन
  2. प्रसाद: व्यक्तित्व और कृतित्व
  3. बंग-भंग आंदोलन और नवजागरण

3. भाषा-शैली एवं साहित्यिक विशेषताएँ

(1) भाषा-शैली

निराला की भाषा भावनाओं की तीव्रता के अनुसार बदलती रहती थी। उनकी भाषा में संस्कृतनिष्ठ, तत्सम शब्दावली मिलती है, परंतु उन्होंने बोलचाल की भाषा को भी अपनाया। उनकी कविता में छायावादी कोमलता के साथ-साथ प्रखर विद्रोह की झलक भी दिखाई देती है।

(2) साहित्यिक विशेषताएँ

  1. मुक्त छंद का प्रयोग – वे हिंदी के पहले प्रमुख कवि थे जिन्होंने मुक्त छंद को अपनाया।
  2. नारी जागरण – उन्होंने महिलाओं की दयनीय स्थिति को अपनी कविताओं में व्यक्त किया।
  3. आध्यात्मिकता और रहस्यवाद – उनकी रचनाओं में दर्शन और आध्यात्मिकता के तत्व मिलते हैं।
  4. यथार्थ और आदर्श का संगम – उन्होंने यथार्थवादी चित्रण किया, लेकिन समाज को सुधारने का संदेश भी दिया।
  5. क्रांतिकारी स्वर – उनकी कविताएँ अन्याय और शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाती हैं।

4. दोहे और उनके हिंदी अनुवाद

निराला दोहों के लिए प्रसिद्ध नहीं थे, लेकिन उनकी कविताओं में संत-कवियों की भाँति गहरी बातें कही गई हैं। उदाहरणस्वरूप, उनके एक प्रसिद्ध दोहे का भावार्थ इस प्रकार है –

"शक्ति के बिना नहीं धर्म,
शक्ति रहित नर निष्कर्म।"

भावार्थ: बिना शक्ति के धर्म की रक्षा संभव नहीं। शक्तिहीन व्यक्ति निष्क्रिय होता है।


5. नाटक और कविता

हालाँकि निराला ने नाटक विधा में विशेष योगदान नहीं दिया, लेकिन उनकी कविताएँ अत्यधिक प्रभावशाली और नाटकीयता से भरपूर थीं। उनकी कुछ प्रमुख कविताएँ इस प्रकार हैं –

  1. राम की शक्ति पूजा
  2. सरोज-स्मृति
  3. वह तोड़ती पत्थर
  4. जूही की कली

6. सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की साहित्यिक प्रविधियाँ

  1. मुक्त छंद का विकास
  2. प्रकृति का चित्रण
  3. नारी सशक्तिकरण
  4. समाज-सुधार और राष्ट्रीयता
  5. व्यंग्य और कटाक्ष

7. निष्कर्ष

सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ हिंदी साहित्य के ऐसे अमर रचनाकार हैं जिन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा से हिंदी काव्य को एक नया आयाम दिया। उन्होंने अपनी रचनाओं में भारतीय समाज की विडंबनाओं, शोषण, स्त्री-दशा, स्वतंत्रता संग्राम, प्रकृति और आध्यात्मिकता को समेटा। उनकी कविताएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। निराला जी का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा, लेकिन वे कभी झुके नहीं और अपने साहित्यिक संघर्षों को जारी रखा। उनका योगदान हिंदी साहित्य में सदैव स्मरणीय रहेगा।

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