Surdas ka jeevan parichay

सूरदास जी का जीवन परिचय

सूरदास जी का जीवन परिचय


 प्रारंभिक परिचय

सूरदास जी हिंदी साहित्य और भक्ति आंदोलन के प्रमुख कवि थे। वे अपनी रचनाओं के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं, भक्ति रस और वात्सल्य भाव से परिपूर्ण हैं। सूरदास जी को हिंदी साहित्य में "भक्तिकाल का सूरज" कहा जाता है। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से कृष्ण भक्ति को एक नया आयाम दिया और अपनी कविताओं में भगवान कृष्ण के विभिन्न रूपों का सुंदर चित्रण किया।

उनकी रचनाएँ न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करती हैं बल्कि काव्य सौंदर्य और भाषा की मधुरता के कारण भी हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। सूरदास जी की रचनाएँ भारतीय लोकजीवन के अत्यंत निकट हैं और वे जनसामान्य की भाषा ब्रजभाषा में लिखी गई हैं। उनकी कविताएँ गेयता, मधुरता, सहजता और भक्ति रस से परिपूर्ण हैं।


सूरदास जी का जीवन परिचय

जन्म और प्रारंभिक जीवन

सूरदास जी के जन्म को लेकर विद्वानों में मतभेद है। कहा जाता है कि उनका जन्म 1478 ईस्वी में हुआ था। उनके जन्मस्थान को लेकर भी विभिन्न मत हैं, लेकिन अधिकांश विद्वान मानते हैं कि वे आगरा और मथुरा के बीच स्थित रुनकता या सीही गाँव (फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश) में जन्मे थे। कुछ विद्वान यह भी मानते हैं कि वे ब्रज क्षेत्र के निवासी थे।

सूरदास जी जन्म से नेत्रहीन थे, लेकिन उनकी आध्यात्मिक दृष्टि इतनी गहरी थी कि उन्होंने श्रीकृष्ण के बाल्यकाल और लीलाओं का मनोहारी चित्रण किया। उनके जन्मांध होने को लेकर भी विद्वानों के मत अलग-अलग हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि वे जन्म से अंधे नहीं थे, बल्कि बाद में अंधत्व को प्राप्त हुए।

सूरदास जी का बचपन अत्यंत संघर्षमय रहा। जन्मांध होने के कारण उन्हें परिवार से विशेष प्रेम और सहयोग नहीं मिला। किशोरावस्था में ही वे घर छोड़कर भजन-कीर्तन में रम गए और भ्रमण करने लगे।

गुरु वल्लभाचार्य से भेंट

युवावस्था में उनकी भेंट महाप्रभु वल्लभाचार्य से हुई, जिन्होंने उन्हें श्रीकृष्ण भक्ति की ओर प्रेरित किया। वल्लभाचार्य ने उन्हें पुष्टिमार्ग में दीक्षित किया और श्रीकृष्ण के लीला-गायन की प्रेरणा दी। कहा जाता है कि सूरदास जी वल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्यों में से एक थे और वे श्रीनाथजी मंदिर (नाथद्वारा) में कीर्तन गाया करते थे।

मृत्यु

सूरदास जी की मृत्यु 1583 ईस्वी में हुई। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने गोवर्धन (वृंदावन) में अपने जीवन की अंतिम सांस ली।


सूरदास जी का साहित्य परिचय

भक्ति काल और सूरदास जी का योगदान

सूरदास जी भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे और वे "कृष्ण भक्ति शाखा" के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में विशेष रूप से वात्सल्य रस, श्रृंगार रस और भक्ति रस का प्रयोग किया। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं।

भाषा और शैली

सूरदास जी ने ब्रजभाषा में अपनी रचनाएँ लिखीं, जो उनकी काव्य अभिव्यक्ति के लिए अत्यंत प्रभावी रही। ब्रजभाषा में माधुर्य, कोमलता और लयात्मकता होती है, जो कृष्ण भक्ति के लिए उपयुक्त मानी जाती है।

उनकी कविता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • सरलता और सहजता: सूरदास जी की भाषा अत्यंत सरल और सुबोध है, जो आमजन को भी आसानी से समझ में आ जाती है।
  • चित्रात्मकता: उन्होंने कृष्ण लीलाओं का इतना सुंदर चित्रण किया कि पाठक और श्रोता स्वयं उस दृश्य को अपने मन में देख सकते हैं।
  • रसों का सुंदर समावेश: वात्सल्य, श्रृंगार और भक्ति रस का अद्भुत समावेश उनकी कविताओं में मिलता है।
  • अलंकारों का प्रयोग: उन्होंने उपमा, रूपक, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया।

सूरदास जी की प्रमुख रचनाएँ

1. सूरसागर

यह सूरदास जी की सबसे प्रसिद्ध रचना है। इसमें श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं और उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का वर्णन किया गया है।

2. सूरसारावली

इसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति, श्रीकृष्ण की महिमा और भक्ति मार्ग का वर्णन किया गया है।

3. साहित्य लहरी

इसमें अलंकार, रस, छंद और भक्ति भावनाओं का समावेश किया गया है।


सूरदास जी के प्रसिद्ध दोहे और उनके हिंदी अनुवाद

1. मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो

अर्थ: श्रीकृष्ण अपनी माता यशोदा से शिकायत कर रहे हैं कि उनके बड़े भाई बलराम उन्हें बहुत चिढ़ाते हैं और कहते हैं कि तुम हमारे सगे भाई नहीं हो।

2. प्रभु मोरे अवगुण चित न धरो

अर्थ: भगवान, मेरे अवगुणों को मत देखो। मैं भले ही पापी हूँ, लेकिन मुझे अपनी शरण में ले लो।

3. अब लैहौ मोहि भजु श्याम

अर्थ: अब मुझे अपने भजन में लीन कर लो, हे श्यामसुंदर! मुझे इस संसार के मोह से मुक्त कर दो।

4. चारु चंद्र की चंचल चितवन

अर्थ: श्रीकृष्ण की सुंदर चंचल आँखें चंद्रमा के समान हैं, जो सभी भक्तों का मन मोह लेती हैं।

5. नंद के आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की

अर्थ: नंद बाबा के घर आनंद का माहौल है क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म हुआ है।


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सूरदास जी की भक्ति भावना

  1. निर्मल और निष्कपट भक्ति – वे किसी भी प्रकार की आडंबरपूर्ण भक्ति के पक्षधर नहीं थे।
  2. वात्सल्य भाव की प्रधानता – उनकी कविताओं में माँ यशोदा और कृष्ण के बीच का वात्सल्य भाव प्रमुखता से दिखता है।
  3. शृंगार और माधुर्य भक्ति – उन्होंने राधा-कृष्ण के प्रेम को अत्यंत पवित्र रूप में प्रस्तुत किया।
  4. लोकप्रियता और जनसामान्य की भाषा – उन्होंने अपनी कविताएँ ब्रजभाषा में लिखीं, जिससे उनकी भक्ति भावना जन-जन तक पहुँच सकी।

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सूरदास जी का हिंदी साहित्य में योगदान
  1. भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया
  2. हिंदी काव्य को समृद्ध किया
  3. ब्रजभाषा को प्रतिष्ठित किया
  4. अलंकारिक भाषा का प्रयोग किया

निष्कर्ष

सूरदास जी हिंदी साहित्य के अमूल्य रत्न थे। उनकी रचनाएँ आज भी हमें कृष्ण भक्ति में डुबोने की शक्ति रखती हैं। उनकी कविताएँ न केवल भक्ति रस से ओत-प्रोत हैं, बल्कि उनमें साहित्यिक सौंदर्य भी देखने को मिलता है। सूरदास जी ने अपने जीवन में नेत्रहीन होते हुए भी जो आध्यात्मिक दृष्टि पाई, वह अनंत है और सदा-सर्वदा हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत बनी रहेगी।



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