Bhaktikal ka itihas

 भक्तिकाल का इतिहास 

Bhaktikal ka parichay


1. भक्तिकाल का परिचय


भारतीय साहित्य में भक्ति काल (14वीं से 17वीं शताब्दी) का विशेष महत्व है। यह काल भारतीय समाज, धर्म और साहित्य के परिवर्तन का युग था। इस समय देश में भक्ति आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा, जिसने समाज में व्याप्त कुरीतियों, अंधविश्वासों और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई। भक्ति आंदोलन ने धार्मिक सहिष्णुता, सरल भक्ति मार्ग, प्रेम और भजन-कीर्तन को बढ़ावा दिया।

Bhaktikal ki samay seema

भक्तिकाल की समय सीमा सामान्यतः 14वीं से 17वीं शताब्दी (1350-1700 ई.) मानी जाती है। यह काल हिंदी साहित्य का स्वर्णयुग था, जब संतों और कवियों ने भक्ति भाव से ओत-प्रोत काव्य रचा। इसमें प्रमुख रूप से निर्गुण भक्ति (संत काव्य) और सगुण भक्ति (राम और कृष्ण काव्य) का विकास हुआ।


2. भक्ति काल का विभाजन


भक्तिकाल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जाता है


1. सगुण भक्ति धारा – इस धारा के कवियों ने ईश्वर को साकार रूप में स्वीकार किया। इसमें राम और कृष्ण की भक्ति प्रधान रही।



2. निर्गुण भक्ति धारा – इसमें ईश्वर को निराकार रूप में माना गया। इस धारा के कवियों ने ज्ञानमार्गी और प्रेममार्गी भक्ति को अपनाया।




3. भक्तिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ


Bhaktikal ke kavi


(क) सगुण भक्ति धारा


1. तुलसीदास (1532-1623 ई.)


भाषा: अवधी, ब्रज


प्रमुख रचनाएँ: रामचरितमानस, विनय पत्रिका, दोहावली, गीतावली


विशेषता: उन्होंने श्रीराम की भक्ति को व्यापक रूप दिया। उनके काव्य में समाज सुधार और नीति शिक्षाएँ भी मिलती हैं।




2. सूरदास (1478-1583 ई.)


भाषा: ब्रज


प्रमुख रचनाएँ: सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी


विशेषता: उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का सुंदर चित्रण किया।




3. मीराबाई (1498-1547 ई.)


भाषा: राजस्थानी, ब्रज


प्रमुख रचनाएँ: मीरा के पद, नरसी जी का मायरा


विशेषता: उन्होंने कृष्ण भक्ति को अपने जीवन का आधार बनाया।





(ख) निर्गुण भक्ति धारा


1. कबीरदास (1398-1518 ई.)


भाषा: सधुक्कड़ी, अवधी


प्रमुख रचनाएँ: बीजक (साखी, सबद, रमैनी)


विशेषता: कबीर ने सामाजिक कुरीतियों, पाखंड, जातिवाद और आडंबरों पर कठोर प्रहार किए।




2. रैदास (1377-1528 ई.)


भाषा: ब्रज, अवधी


प्रमुख रचनाएँ: रैदास के पद


विशेषता: उन्होंने ईश्वर को दयालु और प्रेममयी बताया।




3. दादू दयाल (1544-1603 ई.)


भाषा: राजस्थानी, ब्रज


प्रमुख रचनाएँ: दादू वाणी


विशेषता: वे निर्गुण भक्ति मार्ग के प्रचारक थे।



Bhaktikal ki visheshtaen 

भक्तिकाल (14वीं-17वीं शताब्दी) हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण युग था, जिसमें भक्ति भावनाओं की प्रधानता रही। इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं—ईश्वर की सीधी उपासना, जाति-पाति और धर्मांधता का विरोध, प्रेम और भक्ति का संदेश, सरल भाषा व जनसामान्य की बोली में रचनाएँ, तथा भक्ति के दो रूप—सगुण (राम-कृष्ण भक्ति) और निर्गुण (नानक, कबीर, दादू आदि) का विकास।




4. भक्तिकाल की भाषा और शैली


भक्तिकाल की भाषा सरल, जनसामान्य के लिए बोधगम्य और सहज थी। इसमें ब्रज, अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली, सधुक्कड़ी, पंजाबी आदि भाषाओं का प्रयोग हुआ।


5. भक्तिकाल का प्रभाव


भक्तिकाल ने समाज में धर्म, साहित्य और संस्कृति को नई दिशा दी। इसने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ाया, जातिवाद और पाखंड का विरोध किया, और सरल भक्ति मार्ग को प्रचलित किया।


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भक्तिकाल की प्रवृत्तियाँ


भक्तिकाल (14वीं से 17वीं शताब्दी) भारतीय साहित्य और समाज में एक महत्वपूर्ण युग था। यह भक्ति आंदोलन से जुड़ा था, जिसमें ईश्वर की भक्ति को प्रमुख स्थान दिया गया। इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ इस प्रकार हैं:


1. ईश्वर की भक्ति पर बल


भक्तिकाल में भक्तों ने ज्ञान, योग, और कर्मकांडों की बजाय प्रेम और श्रद्धा के माध्यम से ईश्वर की आराधना को अधिक महत्व दिया।



2. साधनापरक एवं लोकमंगल की भावना


इस काल के संतों ने भक्ति को आत्मा की मुक्ति का साधन बताया।


भक्ति केवल व्यक्तिगत नहीं थी, बल्कि समाज के कल्याण से भी जुड़ी थी।



3. सामाजिक समानता और जातिवाद का विरोध


भक्त कवियों ने जातिवाद, ऊँच-नीच, और धर्म के बाहरी आडंबरों का विरोध किया।


कबीर, रविदास और नानक जैसे संतों ने कहा कि ईश्वर सबके लिए समान हैं।



4. नारी सम्मान और स्वतंत्रता


इस युग में मीरा बाई जैसी संतों ने नारी की भक्ति और स्वतंत्रता को प्रमुखता दी।



5. भाषा की सरलता और जनभाषाओं का प्रयोग


संस्कृत की जगह हिंदी, अवधी, ब्रज, भोजपुरी, पंजाबी जैसी लोकभाषाओं में भक्ति रचनाएँ लिखी गईं।


तुलसीदास ने अवधी में रामचरितमानस, सूरदास ने ब्रज भाषा में सूरसागर, और कबीर ने साखियों में भक्ति साहित्य रचा।



6. संगीत और कीर्तन की परंपरा


भक्ति को संगीत और कीर्तन के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया गया।


संत कवियों की रचनाएँ भजन और दोहों के रूप में प्रचलित हुईं।



7. ईश्वर की व्यक्तिगत उपासना (सगुण-निर्गुण भक्ति)


वैष्णव भक्तों ने राम और कृष्ण की लीलाओं का गुणगान किया (सगुण भक्ति)।


निर्गुण संतों ने निराकार ब्रह्म की उपासना की और मूर्ति पूजा का विरोध किया।



8. सर्वधर्म समभाव और धार्मिक सहिष्णुता


भक्त कवियों ने हिंदू-मुस्लिम भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास किया।


कबीर, नानक, दादू जैसे संतों ने इस्लाम और हिंदू धर्म के बीच एकता की बात की जाती थी



निष्कर्ष


भक्तिकाल भारतीय साहित्य का स्वर्णिम युग था, जिसने धर्म, समाज और संस्कृति को गहराई से प्रभा

वित किया। इस काल के कवियों ने भक्ति के माध्यम से प्रेम, करुणा, समानता और सद्भाव का संदेश दिया।




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