Hindi sahitya aadikal ka itihas

 

हिंदी साहित्य का आदिकाल (वीरगाथा काल) : इतिहास, कवि और रचनाएँ

Hindi sahitya ka Itihas


आदिकाल का परिचय

हिंदी साहित्य को समय-समय पर विभिन्न कालों में बाँटा गया है। इनमें सबसे पहला काल आदिकाल कहलाता है, जिसे वीरगाथा काल भी कहते हैं। यह काल 10वीं से 14वीं शताब्दी तक माना जाता है। इस समय की रचनाएँ मुख्य रूप से वीर रस से भरपूर होती थीं और राजाओं व योद्धाओं की वीरता का गुणगान करती थीं।

आदिकाल का इतिहास

आदिकाल हिंदी भाषा और साहित्य के विकास की प्रारंभिक अवस्था थी। यह काल मुख्य रूप से राजपूत वीरता, युद्धों और धार्मिक प्रवृत्तियों से प्रभावित था। इस समय संस्कृत, अपभ्रंश और प्राकृत भाषाएँ प्रचलित थीं, और इन्हीं से हिंदी का विकास हुआ।

आदिकालीन साहित्य में तीन प्रमुख धाराएँ थीं:

  1. वीरगाथा धारा – इसमें राजपूत राजाओं और योद्धाओं के वीरतापूर्ण कारनामों का वर्णन किया गया।
  2. धार्मिक धारा – इसमें भक्ति और धार्मिक उपदेशों को शामिल किया गया।
  3. लोकगीत और लोकसाहित्य – इसमें जनसामान्य की लोककथाएँ और गीत सम्मिलित थे।

आदिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ

  1. चंदबरदाई (1149-1200 ई.)

    • रचना: पृथ्वीराज रासो
    • विशेषता: पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर आधारित यह एक वीर रस प्रधान ग्रंथ है। इसे हिंदी का पहला महाकाव्य माना जाता है।
  2. नरपति नाल्ह (12वीं शताब्दी)

    • रचना: नैणसी री ख्यात और बिजोलिया की ख्यात
    • विशेषता: इसमें राजस्थान के राजाओं की वीरता का वर्णन किया गया है।
  3. सरहपा और कन्हपा (10वीं-11वीं शताब्दी)

    • रचना: सिद्ध साहित्य
    • विशेषता: ये सिद्धों के गुरु थे और इनके दोहे बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा से संबंधित हैं।
  4. विद्यापति (1352-1448 ई.)

    • रचना: कीर्तिलता और कीर्तिपताका
    • विशेषता: इन्होंने मैथिली भाषा में भी रचनाएँ कीं और भक्ति व श्रृंगार रस के कवि थे।
  5. खुसरो (1253-1325 ई.)

    • रचना: ख़ालिकबारी, रहेलामा
    • विशेषता: इन्होंने हिंदी और फारसी के मिश्रण से ‘खड़ी बोली’ को लोकप्रिय बनाया।


आदिकाल की प्रमुख प्रवृतियां 

आदिकाल, जिसे **वीरगाथा काल** भी कहा जाता है, हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल माना जाता है। यह काल लगभग **1050 ईस्वी से 1375 ईस्वी** तक माना जाता है। इस काल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं:


### 1. **वीर रस की प्रधानता**
   - इस काल में वीर रस की प्रधानता थी। युद्ध, शौर्य, और वीरता के प्रसंगों को काव्य का मुख्य विषय बनाया गया।
   - इस काल के कवियों ने योद्धाओं और राजाओं की वीरता और उनके युद्धों का वर्णन किया।

### 2. **ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन**
   - आदिकाल के काव्य में ऐतिहासिक घटनाओं और चरित्रों का वर्णन मिलता है।
   - इस काल के प्रमुख ग्रंथों में **पृथ्वीराज रासो**, **खुमान रासो**, और **बीसलदेव रासो** शामिल हैं, जिनमें राजाओं और योद्धाओं की गाथाएँ वर्णित हैं

### 3. **लोक जीवन का चित्रण**
   - इस काल के साहित्य में लोक जीवन और सामाजिक परिस्थितियों का चित्रण भी मिलता है।
   - लोकगीतों और लोककथाओं का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

### 4. **धार्मिक भावना**
   - इस काल में धार्मिक भावना भी प्रबल थी। हिंदू और जैन धर्म के प्रभाव से साहित्य में धार्मिक तत्वों का समावेश हुआ।
   - जैन कवियों ने अपने धार्मिक सिद्धांतों और नैतिक शिक्षाओं को काव्य के माध्यम से प्रस्तुत किया।

### 5. **भाषा और शैली**
   - इस काल की भाषा **अपभ्रंश** और **देशी भाषाओं** के मिश्रण से बनी थी।
   - काव्य शैली सरल और प्रवाहमय थी, जिसमें छंद और अलंकारों का प्रयोग किया गया।

### 6. **राजाश्रय**
   - इस काल के कवियों को राजाओं और सामंतों का संरक्षण प्राप्त था। उन्होंने अपने आश्रयदाताओं की प्रशंसा में काव्य रचना की।

### 7. **नायक प्रधान काव्य**
   - इस काल के काव्य में नायक की महिमा और उसके गुणों का वर्णन प्रमुखता से किया गया।
   - नायक के रूप में राजा या योद्धा को चित्रित किया गया।

### 8. **जैन और बौद्ध साहित्य का प्रभाव**
   - जैन और बौद्ध धर्म के प्रभाव से इस काल में नैतिक और धार्मिक शिक्षाओं पर आधारित साहित्य की रचना हुई।

### प्रमुख रचनाएँ:
   - **पृथ्वीराज रासो** (चंदबरदाई)
   - **बीसलदेव रासो** (नरपति नाल्ह)
   - **खुमान रासो**
   - **जयचंद प्रकाश**

इस प्रकार, आदिकाल हिंदी साहित्य का वह कालखंड है जिसमें वीरता, धर्म, और लोक जीवन के तत्व प्रमुखता से उभरकर सामने आए।



आदिकाल हिंदी साहित्य का प्रारंभिक काल माना जाता है

### आदिकाल का नामकरण

आदिकाल के नामकरण को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
1. **आदिकाल**: हिंदी साहित्य के प्रारंभिक काल होने के कारण इसे आदिकाल कहा गया।
2. **वीरगाथा काल**: इस काल में वीर रस प्रधान रचनाएँ लिखी गईं, जिनमें युद्ध और शौर्य का वर्णन मिलता है।
3. **चारण काल**: इस काल की रचनाएँ चारण कवियों द्वारा लिखी गईं, जो राजाओं की प्रशस्ति गाते थे।
4. **सिद्ध-सामंत काल**: कुछ विद्वान इसे सिद्ध और सामंतों के प्रभाव वाला काल मानते हैं।

आदिकाल का काल विभाजन

आदिकाल को मुख्य रूप से निम्नलिखित उपकालों में विभाजित किया जा सकता है:
1. **प्रारंभिक आदिकाल (1050-1200 ईस्वी)**: इस काल में अपभ्रंश भाषा से हिंदी की ओर संक्रमण हो रहा था।
2. **मध्य आदिकाल (1200-1300 ईस्वी)**: इस काल में वीरगाथाओं का प्रचलन बढ़ा।
3. **उत्तर आदिकाल (1300-1375 ईस्वी)**: इस काल में भक्ति साहित्य के प्रारंभिक संकेत मिलने लगे।


आदिकाल हिंदी साहित्य का वह काल है जिसमें भाषा और साहित्य का विकास अपने प्रारंभिक चरण में था। इस काल की रचनाएँ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं

आदिकाल के नामकरण के विद्वानों का नाम


आदिकाल का नामकरण हिंदी साहित्य के इतिहास में विभिन्न विद्वानों द्वारा किया गया है, लेकिन प्रमुख रूप से इसे डॉ. रामचंद्र शुक्ल ने "आदिकाल" कहा।

हालाँकि, अन्य इतिहासकारों ने इसे अलग-अलग नाम दिए हैं:

गणपति चंद्र गुप्त ने इसे वीरगाथा काल कहा

डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इसे वीर काल कहा।

शिवसिंह सेंगर ने इसे प्रारंभिक काल कहा।


लेकिन हिंदी साहित्य में "आदिकाल" नाम सबसे अधिक प्रचलित है, जिसे रामचंद्र शुक्ल ने मान्यता दी


आदिकाल का महत्व

  • वीरगाथा काल हिंदी साहित्य का आधारभूत काल था।
  • इसमें वीरता, साहस, प्रेम, और भक्ति का समावेश था।
  • यह काल हिंदी भाषा के विकास का महत्वपूर्ण चरण था।





निष्कर्ष

आदिकाल हिंदी साहित्य का प्रारंभिक युग था, जिसमें वीरगाथाएँ, भक्ति काव्य और लोकसाहित्य का विकास हुआ। इस काल के कवियों ने वीरता, धर्म और समाज की भावनाओं को अपनी रचनाओं में प्रमुखता दी। आदिकालीन साहित्य ने आगे आने वाले भक्तिकाल और रीतिकाल के लिए आधार तैयार किया।


आज के इस पोस्ट में हिंदी साहित्य के इतिहास, रचनाएं, कविताएं, कवियों के नाम के बारे में जाने अगर जानकारी अच्छी लगी तो कॉमेंट करें और अपने दोस्तों को भी शेयर करे ताकि ये जानकारी उन तक भी पहुंच सके ।

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