Tulsidas ka jeevan parichay

 

गोस्वामी तुलसीदास: जीवन परिचय और साहित्यिक योगदान


Tulsidas ka jeevan parichay

Tulsidas ka jeevan parichay in hindi

गोस्वामी तुलसीदास भारतीय साहित्य और भक्ति आंदोलन के महानतम कवियों में से एक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी रचनाओं के माध्यम से अमूल्य योगदान दिया और श्रीराम भक्ति की भावना को जन-जन तक पहुँचाया। उनकी कृतियाँ न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि साहित्यिक, भाषाई और सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत मूल्यवान हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना रामचरितमानस को हिंदी साहित्य की सबसे बड़ी धरोहरों में गिना जाता है। इस विस्तृत लेख में हम तुलसीदास जी के जीवन, उनकी रचनाओं, भाषा-शैली, साहित्यिक योगदान और उनके भक्ति आंदोलन में योगदान पर गहराई से चर्चा करेंगे।


गोस्वामी तुलसीदास का जीवन परिचय

जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

गोस्वामी तुलसीदास का जन्म 1511 ईस्वी (संवत 1554) में उत्तर प्रदेश के राजापुर गाँव (वर्तमान चित्रकूट ज़िला) में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दूबे और माता का नाम हुलसी था। जन्म से जुड़ी एक किंवदंती प्रचलित है कि तुलसीदास जन्म लेते ही "राम" का उच्चारण करने लगे थे और उनके मुख में 32 दाँत पहले से ही मौजूद थे। इस असाधारण घटना के कारण उनके माता-पिता ने उन्हें त्याग दिया।

बालक तुलसीदास का पालन-पोषण उनके गुरु नरहरिदास ने किया, जो कि रामानंद संप्रदाय के संत थे। उन्होंने तुलसीदास को श्रीराम भक्ति और संत परंपरा से परिचित कराया, जिसने उनके जीवन को पूरी तरह श्रीराम के प्रति समर्पित कर दिया।

शिक्षा और ज्ञानार्जन

तुलसीदास अत्यंत मेधावी छात्र थे। उन्होंने वाराणसी में संस्कृत, वेद, पुराण, उपनिषद और रामकथा का गहन अध्ययन किया। उनकी विद्वता और स्मरण शक्ति अद्वितीय थी। इसी दौरान उन्होंने साधु-संतों की संगति में रहकर भक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया।

विवाह और वैराग्य

युवा अवस्था में तुलसीदास का विवाह रत्नावली नामक स्त्री से हुआ था। एक बार जब तुलसीदास अपनी पत्नी के प्रति अत्यधिक आसक्त हो गए और रात के समय उनसे मिलने चले गए, तब रत्नावली ने उन्हें उपदेश देते हुए कहा—

"अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति।
जो होती श्रीराम में, तो काहे भव-भीत।।"

इस एक वाक्य ने तुलसीदास के जीवन की दिशा बदल दी। उन्होंने संसार का त्याग कर संन्यास धारण कर लिया और संपूर्ण जीवन राम भक्ति में लीन हो गए।

राम भक्ति का प्रचार

संन्यास ग्रहण करने के बाद तुलसीदास तीर्थयात्रा करने लगे और अनेक स्थानों पर जाकर श्रीराम कथा का प्रचार किया। उन्होंने काशी, चित्रकूट, अयोध्या, प्रयाग और अन्य तीर्थस्थानों पर रहकर भक्ति मार्ग को आगे बढ़ाया। काशी में रहकर उन्होंने संस्कृत ग्रंथों का हिंदी में अनुवाद करना शुरू किया ताकि आम जनमानस भी श्रीराम कथा का लाभ उठा सके।

मृत्यु

गोस्वामी तुलसीदास का निधन 1623 ईस्वी (संवत 1680) में वाराणसी के अस्सी घाट पर हुआ। उनके निधन के बाद भी उनकी रचनाएँ और भक्ति परंपरा आज तक लोगों के हृदय में जीवित हैं।


तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ

गोस्वामी तुलसीदास ने हिंदी साहित्य को अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों से समृद्ध किया। उनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं—

1. रामचरितमानस

  • तुलसीदास की सबसे प्रसिद्ध और सर्वाधिक पूजनीय रचना।
  • अवधी भाषा में लिखी गई यह रचना रामायण का सरल और भक्तिमय संस्करण है।
  • इसमें सात कांड हैं—बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, लंकाकांड और उत्तरकांड।
  • यह ग्रंथ न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

2. विनय पत्रिका

  • श्रीराम के प्रति भक्तिपूर्ण विनय से भरी यह रचना अत्यंत प्रभावशाली है।
  • इसमें 279 पद हैं जिनमें भक्ति, नीति और आध्यात्मिक विचार प्रस्तुत किए गए हैं।

3. दोहावली

  • यह रचना नीति, भक्ति और जीवन दर्शन से संबंधित दोहों का संग्रह है।
  • इसमें तुलसीदास ने धर्म, सदाचार और नैतिक मूल्यों पर जोर दिया है।

4. कवितावली

  • इसमें अवधी भाषा में रामकथा को काव्यबद्ध किया गया है।
  • वीर रस और भक्ति रस का सुंदर संयोजन इसमें देखने को मिलता है।

5. गीतावली

  • ब्रज भाषा में लिखी गई यह रचना श्रीराम की बाल लीलाओं, विवाह, वनगमन आदि का सुंदर वर्णन करती है।

6. हनुमान चालीसा

  • यह तुलसीदास की सबसे लोकप्रिय स्तोत्र रचना है।
  • इसमें भगवान हनुमान के गुणों का विस्तार से वर्णन किया गया है।

तुलसीदास की भाषा और शैली

भाषा

तुलसीदास ने मुख्य रूप से अवधी और ब्रज भाषा में रचनाएँ कीं।

  • रामचरितमानस - अवधी भाषा में
  • गीतावली - ब्रज भाषा में
  • विनय पत्रिका और दोहावली - मिश्रित भाषा में

शैली

तुलसीदास की शैली बहुआयामी थी—

  1. भक्ति रसरामचरितमानस, विनय पत्रिका
  2. श्रृंगार रसगीतावली
  3. वीर रसकवितावली
  4. नीति और उपदेशात्मक शैलीदोहावली

तुलसीदास का साहित्यिक योगदान

  1. भक्ति आंदोलन को दिशा दी – उन्होंने भक्ति आंदोलन को नई ऊर्जा दी।
  2. लोकभाषा को प्रतिष्ठा दी – संस्कृत की बजाय उन्होंने अवधी और ब्रज भाषा में लिखा।
  3. नीति और आदर्शों का प्रचार किया – उनके दोहे और चौपाइयाँ समाज को सही दिशा देने वाले हैं।
  4. राम कथा का प्रचार किया – उनकी रचनाओं के कारण राम कथा घर-घर तक पहुँची।

तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे

  1. "बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।"
  2. "पराधीन सपनेहु सुख नाही।"
  3. "समरथ को नहि दोष गोसाईं।"
  4. "जिनके रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखी तैसी।।"

गोस्वामी तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे और उनका हिंदी अर्थ

गोस्वामी तुलसीदास जी के दोहे न केवल भक्ति और अध्यात्म से भरपूर हैं, बल्कि जीवन के नैतिक मूल्यों और व्यवहारिक ज्ञान का भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं। उनके दोहे सरल भाषा में गहरे अर्थ समेटे हुए हैं। यहाँ कुछ प्रसिद्ध दोहे और उनके हिंदी अनुवाद दिए गए हैं—


1. बड़े भाग मानुष तन पावा। सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।

हिंदी अनुवाद:
मनुष्य जन्म बहुत बड़े सौभाग्य से प्राप्त होता है। सभी धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि यह जन्म देवताओं को भी दुर्लभ होता है, इसलिए इसे व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए।


2. पराधीन सपनेहु सुख नाही।

हिंदी अनुवाद:
दूसरों पर निर्भर रहने वाले व्यक्ति को कभी भी सुख नहीं मिल सकता, यहाँ तक कि वह सपने में भी सुखी नहीं रह सकता। स्वतंत्रता सबसे बड़ा सुख है।


3. समरथ को नहि दोष गोसाईं।

हिंदी अनुवाद:
जो व्यक्ति शक्तिशाली होता है, उसे कोई दोष नहीं देता। समाज में शक्ति ही व्यक्ति की प्रतिष्ठा और सम्मान का आधार बनती है।


4. जिनके रही भावना जैसी, प्रभु मूरत तिन देखी तैसी।।

हिंदी अनुवाद:
हर व्यक्ति को भगवान उसी रूप में दिखाई देते हैं, जैसा उनका भाव होता है। जो जैसा सोचता है, भगवान उसे वैसा ही अनुभव होते हैं।


**5. आवत ही हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।

तुलसी वहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह।।**

हिंदी अनुवाद:
जहाँ हमारे आने से कोई खुश न हो, जहाँ आँखों में प्रेम न दिखे, वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, भले ही वहाँ सोने की वर्षा क्यों न हो रही हो।


**6. राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।

तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजियार।।**

हिंदी अनुवाद:
अपने जीवन रूपी घर के द्वार पर राम नाम रूपी दीपक को जला लो, यदि तुम भीतर और बाहर दोनों जगह प्रकाश चाहते हो।


**7. तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजत चहुं ओर।

वशीकरण इक मंत्र है, परिहरु वचन कठोर।।**

हिंदी अनुवाद:
मीठे वचन बोलने से हर जगह सुख का संचार होता है। यह एक ऐसा मंत्र है जिससे लोग हमारे वश में हो जाते हैं। इसलिए कठोर वचन त्याग देना चाहिए।


8. जाके प्रिय न राम बैदेही। तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जद्यपि परम सनेही।।

हिंदी अनुवाद:
जिसे श्रीराम और सीता माता प्रिय नहीं हैं, उसे लाखों शत्रुओं के समान समझकर त्याग देना चाहिए, भले ही वह कितना भी प्रिय मित्र या संबंधी क्यों न हो।


**9. तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या, विनय, विवेक।

साहस, सुकृत, सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।।**

हिंदी अनुवाद:
विपत्ति के समय केवल ये आठ चीजें ही साथ देती हैं—विद्या (ज्ञान), विनय (नम्रता), विवेक (समझदारी), साहस, अच्छे कर्म, सच्चाई, सच्चे व्रत और श्रीराम का भरोसा।


**10. साधु चरित सुभाष सम, सज्जन के गुण मीन।

सुरसरी सम सब काहँ हित, अघ न समै सत कीन।।**

हिंदी अनुवाद:
संत का चरित्र सुगंधित फूल की तरह होता है। सज्जन व्यक्ति जल में रहने वाली मछली की तरह होते हैं जो पानी को शुद्ध करती है। गंगा सभी के लिए हितकारी होती है, और सत्य कभी पाप से मिल नहीं सकता।


**11. तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान।

भीलन लूटी गोपिका, वही अर्जुन वही बाण।।**

हिंदी अनुवाद:
मनुष्य कितना भी महान क्यों न हो, समय सबसे अधिक शक्तिशाली होता है। जिस अर्जुन के बाणों से महाभारत जीती गई थी, वही अर्जुन काल के प्रभाव से इतना असहाय हो गया कि भीलों ने गोपियों को लूट लिया और वह कुछ नहीं कर सका।


**12. दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।

तुलसी दया न छोड़िए, जब लग घट में प्राण।।**

हिंदी अनुवाद:
दयालुता ही धर्म की जड़ है, जबकि अह


जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय पढ़ें विस्तार से नीचे लिंक पर क्लिक कर के ।

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गोस्वामी तुलसीदास की प्रवृत्तियाँ


गोस्वामी तुलसीदास की प्रवृत्तियाँ उनके व्यक्तित्व, कृतित्व और भक्ति मार्ग में योगदान को दर्शाती हैं। उन्होंने संपूर्ण जीवन श्रीराम भक्ति और समाज सुधार में समर्पित किया। उनकी प्रवृत्तियाँ मुख्य रूप से भक्ति, नीति, समाज सुधार और लोक कल्याण से जुड़ी हुई थीं।


1. भक्ति प्रवृत्ति

तुलसीदास की प्रमुख प्रवृत्ति राम भक्ति थी। वे श्रीराम के अनन्य भक्त थे और उनका संपूर्ण जीवन भगवान श्रीराम की भक्ति में व्यतीत हुआ। उनकी भक्ति निम्नलिखित विशेषताओं से युक्त थी—

  • सगुण भक्ति – तुलसीदास ने सगुण भक्ति को अपनाया, जिसमें भगवान को साकार रूप में पूजा जाता है।
  • राम नाम की महिमा – वे राम नाम को सबसे प्रभावशाली और पवित्र मानते थे। उन्होंने कहा—
    "राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार।
    तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजियार।।"

    (अर्थ: यदि जीवन में प्रकाश चाहिए तो अपनी जीभ के द्वार पर राम नाम रूपी दीपक जलाकर रखो।)
  • हनुमान भक्ति – उन्होंने हनुमान चालीसा लिखकर हनुमान जी की महिमा का व्यापक प्रचार किया।

2. साहित्यिक प्रवृत्ति

तुलसीदास एक महान कवि थे, जिनकी प्रवृत्ति साहित्यिक सृजन की ओर भी थी। उनके साहित्यिक योगदान में निम्नलिखित विशेषताएँ मिलती हैं—

  • लोकभाषा का प्रयोग – उन्होंने संस्कृत की बजाय अवधी और ब्रज भाषा में काव्य रचना की, ताकि आमजन उनकी रचनाओं को समझ सकें।
  • सर्वसुलभ साहित्य – उनका साहित्य कठिन दार्शनिक विचारों की बजाय सरल, भक्तिपूर्ण और नीति पर आधारित था।
  • काव्य की विविधता – उन्होंने भक्ति, नीति, श्रृंगार, वीर रस, नीति और आध्यात्म से संबंधित रचनाएँ कीं।

3. समाज सुधारक प्रवृत्ति

तुलसीदास केवल भक्त और कवि ही नहीं थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उनकी समाज सुधारक प्रवृत्तियाँ इस प्रकार थीं—

  • जाति-पाति विरोध – उन्होंने भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया और जाति-भेद को व्यर्थ माना।
  • नारी सम्मान – उन्होंने महिलाओं को सम्मान देने का संदेश दिया। हालांकि, अपने प्रारंभिक जीवन में पत्नी के कठोर वचनों से व्यथित होकर वे विरक्त हुए, लेकिन बाद में वे नारी सम्मान के समर्थक बने।
  • नीति और नैतिकता का प्रचार – उन्होंने नैतिक मूल्यों पर आधारित जीवन जीने का उपदेश दिया। उनके दोहों में यह भावना स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।

उदाहरण:
"पराधीन सपनेहु सुख नाही।"
(अर्थ: जो व्यक्ति पराधीन है, वह कभी भी सुखी नहीं रह सकता।)


4. धार्मिक प्रवृत्ति

तुलसीदास की धार्मिक प्रवृत्ति अत्यंत गहरी थी। वे वैष्णव संप्रदाय से जुड़े थे और रामानंदी संतों की परंपरा में थे। उनकी धार्मिक प्रवृत्तियाँ इस प्रकार थीं—

  • रामानंद संप्रदाय से जुड़ाव – वे रामानंदाचार्य के शिष्य संत नरहरिदास से दीक्षित थे।
  • तीर्थ यात्रा प्रवृत्ति – वे चित्रकूट, अयोध्या, काशी और प्रयाग जैसे तीर्थ स्थलों पर श्रीराम कथा का प्रचार करते रहे।
  • मंदिर निर्माण और भजन-कीर्तन – वे भगवान राम के मंदिरों में भजन-कीर्तन और कथा का आयोजन करते थे।

5. नीति और आदर्शवादिता की प्रवृत्ति

तुलसीदास ने अपने ग्रंथों में नीति और आदर्शों का विशेष प्रचार किया। वे नीति और धर्म को जीवन में सर्वोपरि मानते थे। उनके नीति-संबंधी दोहे और चौपाइयाँ आज भी समाज को मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।

उदाहरण:
"दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान।
तुलसी दया न छोड़िए, जब लग घट में प्राण।।"

(अर्थ: दया ही धर्म की जड़ है, और अभिमान ही पाप का मूल कारण है। जब तक जीवन है, तब तक दया को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।)


6. संत प्रवृत्ति

तुलसीदास एक सच्चे संत थे। उनके संत स्वभाव की विशेषताएँ थीं—

  • अहंकार रहित जीवन – उन्होंने कभी भी अपने ज्ञान और भक्ति पर घमंड नहीं किया।
  • सर्वजन हिताय कार्य – उन्होंने अपनी रचनाओं और भक्ति प्रवृत्तियों के माध्यम से संपूर्ण समाज के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।
  • संतों के प्रति श्रद्धा – वे अन्य संतों का बहुत सम्मान करते थे और संत-समागम में आनंदित होते थे।

7. लोककल्याणकारी प्रवृत्ति

तुलसीदास ने केवल आध्यात्मिक और साहित्यिक कार्य ही नहीं किए, बल्कि वे जनकल्याण में भी लगे रहे। उनकी लोककल्याणकारी प्रवृत्तियाँ इस प्रकार थीं—

  • रामचरितमानस की रचना – उन्होंने रामचरितमानस लिखकर समाज को रामराज्य का आदर्श दिया।
  • सामाजिक एकता का संदेश – उन्होंने समाज में सद्भाव और समरसता स्थापित करने का प्रयास किया।
  • गुरु-शिष्य परंपरा का पालन – उन्होंने अपने गुरु नरहरिदास का जीवनभर सम्मान किया और शिक्षा के महत्व को समझाया।
कबीर दास का जीवन परिचय पढ़ें विस्तार से नीचे लिंक पर क्लिक कर के 

निष्कर्ष

गोस्वामी तुलसीदास न केवल एक महान संत थे, बल्कि हिंदी साहित्य के अमर कवि भी थे। उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से न केवल श्रीराम भक्ति को बढ़ावा दिया, बल्कि समाज में नैतिक मूल्यों को स्थापित करने का प्रयास भी किया। रामचरितमानस उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति है, जो आज भी लाखों लोगों के लिए आस्था और प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उनकी भाषा सरल, मधुर और प्रभावशाली थी, जिससे उनकी रचनाएँ हर वर्ग तक पहुँचीं।

तुलसीदास का साहित्यिक योगदान अमर है और आने वाली पीढ़ियाँ भी उनसे प्रेरणा लेती रहेंगी।


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